भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने SpaDeX Mission के तहत 229 टन वजन के पीएसएलवी रॉकेट से ३० दिसम्बर २०२४ को हरिकोटा से दो छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है। इसरो द्वारा प्रक्षेपित ये दो उपग्रह अंतरिक्ष में 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे। Spadex मिशन के तहत पीएसएलवी -सी60 राकेट से भेजे गए दोनो छोटे अंतरिक्षयान, जिसको चेजर और टारगेट कहा जा रहा है।
भारत के लिए SpaDeX Mission क्यों जरुरी है?
भारत भविष्य में चंद्रयान, गगणयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे कई मिशन प्रस्तावित हैं जिसमे डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया शामिल है। अतः भारत के लिए SpaDex मिशन के तहत डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक बहुत जरुरी है
डॉकिंग और अनडॉकिंग क्या है?
जब अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान को आपस में जोड़ते और अलग करते हैं उसको डॉकिंग और अनडॉकिंग कहते हैं. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO द्वारा अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग को कैसे पूरा किया जायेगा?
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO के अनुसार पीएसएलवी रॉकेट में दो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (एसडीएक्स01) और स्पेसक्राफ्ट बी (एसडीएक्स02) को एक ऐसी कक्षा में भेजा गया है जो उन्हें एक दूसरे अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान को पांच किलोमीटर की दूरी पर रखेगी।
बाद में, इसरो के वैज्ञानिक, ISRO मुखयलय से उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद ये अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर परस्पर मिलकर एक(डॉक) हो जाएंगे। अंतरिक्ष यान के आपस में जुड़ने की इसी प्रक्रिया को डॉकिंग कहते हैं।
इसके बाद ISRO के वैगनिक इन दोनों अंतरिक्ष यान या उपग्रहों को अलग करेंगे और अंतरिक्ष यान या उपग्रह को अलग करने की प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहा जाता है।
अभी तक किन किन देशों ने अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग करने की क्षमता को हासिल किया है?
अभी तक पूरी दुनिया में सिर्फ तीन देश अमेरिका, रूस और चीन ने अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डाक और अनडॉक करने में सक्षम को हाशिल किया है।
डॉकिंग और अनडॉकिंग का स्वदेशी तकनीक सिस्टम विकसित करने की क्षमत रखने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बनेगा।
डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता हासिल करने से भारत को क्या फायदा होगा?
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO को डॉकिंग और अनडॉकिंग मिशन की सफलता से भविष्य के मिशन चंद्रयान-4, मंगलयान-२, अपना भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, गगणयन मिशन, चाँद पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री का पैर रखने जैसे कई सपनों को साकार करने में मदद मिलेगी।
क्या भारत ने लिया डॉकिंग सिस्टम तकनीक का पेटेंट किया है?
अभी तक पूरी दुनिया में अपने बल बूते पर डॉकिंग अनडॉकिंग की तकनीक को अंजाम देने की तकनीक विकसित करने में सिर्फ रूस, अमेरिका और चीन को ही महारत हासिल है।
अब जल्द ही भारत भी अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान या उपग्रह को आपस में जोड़ने और अलग करने की तकनीक (डॉकिंग और अनडॉकिंग) की क्षमता को हासिल कर इस ग्रुप में शामिल होने जा रहा है।
भारत के लोगों के लिए ये गौरव की बात है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अब इस नयी डॉकिंग सिस्टम का पेटेंट भी ले लिया है।
क्योंकि, दुनिया के कोई भी देश अपनी डॉकिंग और अनडॉकिंग की कठिन बारीकियों से भरा तकनीक एक दूसरे के साथ को साझा नहीं करते हैं। इसलिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को अपना खुद का डॉकिंग तकनीक विकसित करना पड़ा।
क्या डॉकिंग तकनीक भारत के चंद्रयान-4 मिशन में भी काम आएगी?
हाँ, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को डॉकिंग अनडॉकिंग तकनीक भविष्य के बहुत सारे मिशन में काम आएगी जिसमे भारत का चंद्रयान-4 मिशन भी शामिल है।
जैसा भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने बताया है चंद्रयान का एक हिस्सा चाँद पर उतरेगा और चाँद पर से चाँद की मिटटी का नमूना लेकर चाँद पर घूम रहे यान से जुड़ेगा , उसके बाद वह यान धरती पर वापस आएगा।
उसके बाद भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनेगा, तब इसरो धरती से कई मॉड्यूल्स को ले जाकर, इन मॉडल्स को अंतरिक्ष में आपस में जोड़ा जाएगा।
और इसरो 2040 में जब एक भारतीय को चांद पर भेजेगा और फिर वापस लाएगा। और इन सभी मिशन में इसरो द्वारा विकसित डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक काम आएगी।
सबसे पहले डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक का विकास किस देश ने किया था?
सबसे पहले डॉकिंग अमेरिका ने अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान या उपग्रह को डॉक और अनडॉक 16 मार्च, 1966 को डॉकिंग की थी।
सोवियत संघ ने पहली बार 30 अक्टूबर, 1967 को दो अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में डॉक और अनडॉक किए थे।
अपना पड़ोसी देश चीन ने अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक पहली बार 2 नवंबर, 2011 को हाशिल की थी।
दोनों अंतरिक्ष यान का कुल वजन 220 किलोग्राम है। PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर दोनों स्पेसक्राफ्ट अलग दिशाओं में लॉन्च किए जाएंगे।
इस दौरान इसरो के इस टारगेट यान और चेजर यान की रफ्तार 28 हजार 800 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच जाएगी।
इसरो के लॉन्च के करीब 10 दिन बाद डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी। मतलब टारगेट यान और चेजर यान को आपस में जोड़ा जाएगा।
करीब 20 किलोमीटर की दूरी से इसरो का यह चेजर अंतरिक्षयान टारगेट अंतरिक्षयान की तरफ बढ़ेगा। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक यह दूरी घटाते हुए 5 किलोमीटर तक पहुचायेंगे, फिर डेढ़ किलोमीटर तक पहुचायेंगे, इसके बाद 500 मीटर तक पहुचायेंगे।
जब चेजर अंतरिक्षयान और टारगेट अंतरिक्षयान के बीच की दूरी 3 मीटर होगी। तब डॉकिंग यानी अंतरिक्षयान के आपस में जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
चेजर अंतरिक्षयान और टारगेट अंतरिक्षयान के जुड़ने के बाद दोनों अंतरिक्षयान में इलेक्ट्रिकल पावर का आदान -प्रदान किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया को इसरो के वैज्ञानिक धरती से कंट्रोल करेंगे।